वैसे तो भारत के प्राचीन साहित्य तथा दर्शन के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिए हमारे पास बहुत सारे स्रोत हैं किंतु प्राचीन भारतीय इतिहास की जानकारी के लिए वे स्रोत लाभकारी नहीं है जिसके कारण हमें प्राचीन भारत के इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं है किंतु हमारे पास फिर भी कुछ ऐसे स्रोत या साधन उपलब्ध है जिनकी सहायता से हमें प्राचीन भारत के इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। वैसे तो बहुत सारे स्रोत हमारे पास उपलब्ध है किंतु कुछ स्रोत या तो विश्वास करने योग्य वैज्ञानिक कारणों पर आधारित है तो कुछ सिर्फ मान्यताओं और व्यक्तिगत सोच पर आधारित है।ऐसे में प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोतों को मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया है जो इस प्रकार है:-
(1) साहित्यिक स्रोत
(2) विदेशियों का विवरण
(3) पुरातात्विक स्रोत
(1) साहित्यिक स्रोत:-
प्राचीन भारत के इतिहास के विषय में सर्वाधिक जानकारी देने वाले सोच साहित्यिक स्रोत है।साहित्यिक स्रोत से अभिप्राय उन ऐतिहासिक किताबों से है जो अतीत के विषय में हमें जानकारी देती है। साहित्यिक स्रोतों को दो भागों में बांटा जा सकता है:-
1. धार्मिक साहित्य
2. गैर धार्मिक साहित्य
1. धार्मिक साहित्य:-
धार्मिक साहित्य से अभिप्राय ऐतिहासिक किताबों से है जो किसी ना किसी धर्म से संबंधित हैं यह किताबें किसी समुदाय या धर्म के लोगों के बारे में हमें जानकारी देती है। भारत में प्राचीन काल में मुख्य धर्म के रूप में हिंदू, बौद्ध और जैन धर्म के लोग थे। जैन धर्म के लोगों ने अपना विस्तार किया इन धर्म के विद्वानों और दार्शनिकों ने बहुत सारे साहित्य, पुस्तकों की रचना की और इन पुस्तकों को पढ़कर हमें उनके बारे में जानकारी प्राप्त होती है कि उस समय लोगों की जीवनशैली क्या थी, उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति कैसी थी, हमें इन किताबों से ही उनके राजनीतिक जीवन, उनकी सभ्यता, उनकी संस्कृति के विषय में, उनके रहन-सहन के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
हिंदू धर्म से जुड़े साहित्य:-
हिंदू धर्म भारत की प्राचीनतम धर्म है इसके बाद ही बौद्ध और जैन जैसे धर्म का उद्भव हुआ है। सिंधु सभ्यता के पतन के बाद वैदिक सभ्यता का उद्भव हुआ था।सिंधु सभ्यता के बाद आर्य लोग आए उन्होंने बहुत सारे पुस्तक तथा साहित्य लिखे जिससे हमें हिंदू धर्म की जीवन शैली, उनकी सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक जीवन, उनकी संस्कृति,उनका रहन-सहन के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। हिंदू धर्म में बहुत सारे पुस्तकों तथा ग्रंथों को लिखा गया है ये हैं :- वेद, उपनिषद् , आरण्यक, ब्राह्मण, वेदांग, सूत्र, पुराण, महाभारत, रामायण ।
वेद :-
यह भारत का सबसे प्राचीनतम धर्म ग्रंथ है जिसके संकलनकर्ता महर्षि कृष्ण द्वैपायन वेद व्यास को माना जाता है। वेदों की संख्या 4 हैं :- ऋग्वेद, सामवेद, यजुर्वेद, अथर्ववेद । वेद संस्कृत भाषा और पद में लिखे गए हैं। अपवाद स्वरूप यजुर्वेद गद और पद में लिखा गया है। अथर्ववेद में भी गद्य अंश है जो कि पूरे ग्रंथ का छठा भाग है।
1. ऋग्वेद :-
- ऋचाओ के क्रमबद्ध ज्ञान के संग्रह को ऋग्वेद कहा जाता है।
- यह 10 मंडल में विभाजित हैं। इसमें 1028 श्लोक है जिसमें 11 वालाखिल्य श्लोक हैं तथा 10462 ऋचाएं हैं।
- इस वेब से आर्य के इतिहास, राजनीतिक प्रणाली के बारे में जानकारी मिलती है।
- ऋग्वेद का पहला तथा दसवां मंडल सबसे अंतिम में लिखा गया है इसलिए इसे क्षेपक कहते हैं।
- ऋग्वेद के विचारों के पढ़ने वाले ऋषि को होतृ कहते हैं।
- ऋग्वेद के रचयिता विश्वमित्र है।
- इसके तीसरे मंडल में गायत्री मंत्र है जिससे सावितृ (सावित्री) नामक देवता को संबोधित किया गया है। नौवें मंडल में सोम की चर्चा की गई है। इस के आठवें मंडल की ऋचाओं को खिल कहा जाता है। इस के दसवें मंडल में चतुष्वण्य समाज की कल्पना का वर्णन है जिसके अनुसार ब्राह्मण के मुख, भुजाओं, जंघाओ और चरणों से क्रमश: चार वर्ण ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शुद्र उत्पन्न हुए हैं।
- ऋग्वेद में पुरुष देवताओं को अधिक महत्व दिया गया है। ऋग्वेद में कुल 33 देवताओं का उल्लेख किया गया है। जिसमें से इंद्र, वरुण, अग्नि, सोम तथा सूर्य को प्रमुख देवता के रूप में माना गया है।
- ऋग्वेद का पाठ करने वाले को होतृ कहते हैं।
- ऋग्वेद में इंद्र के लिए 250 तथा अग्नि के लिए 200 ऋचाओ की रचना की गई है।
- इस वेद में विश्ववारा, घोसा, लोपामुद्रा इत्यादि जैसी विदुषी महिलाओं का उल्लेख मिलता है। जो महिला आजीवन धर्म तथा दर्शन को महत्व देती है उसे ब्रह्मवादिनी कहा गया है।
- ऋग्वेद में आर्यों तथा अनार्यों के बीच के संघर्ष का भी वर्णन है।
- इस वेद में ‘दशराज्ञ युद्ध’ का उल्लेख है। यह युद्ध रावी नदी के तट पर हुआ था और इस युद्ध में सुदास की विजय हुई।
- इंद्र को पुरंदर, दस्युहन, पुरोभित जैसे नामों से पुकारा गया है।
- सरस्वती को ऋग्वेद में पवित्र नदी के रूप में दिखाया गया है।।
- गृत्समद, विश्वामित्र, वामदेव, भारद्वाज, अत्रि और वशिष्ठ जैसे नाम ऋग्वेद में मंत्र रचिताओं के रूप में मिलते हैं।
- विद्वानों का कहना है कि ऋग्वेद की रचना पंजाब में हुई थी।
- ‘असतो मा सद्गमय’ वाक्य ऋग्वेद से ही लिया गया है।
- ऋग्वेद में आकाश के देवी-देवता
सावितृ (सावित्री) सूर्य उषा पूषन विष्णु नासत्य
2. सामवेद :-
- ‘साम’ का शाब्दिक अर्थ गान होता है। सामवेद के अधिकांश श्लोक तथा मंत्र ऋग्वेद से लिए गए हैं।इस वेद में मुख्य रूप से यज्ञ के अवसर पर जो मंत्र गाए जाते हैं उन्हीं मंत्रों का वर्णन है।
- इस वेद से संबंधित श्लोक तथा मंत्रों का गायन करने वाले पुरोहित उद्रातृ कहलाते हैं।
- इस वेद में कुल 1810 सूक्त हैं जो सभी ऋग्वेद से लिए गए हैं।
- सामवेद संगीत से संबंधित हैं इसे भारतीय संगीत का जनक कहा जाता है।
- सामवेद में 78 ऋचाएं नयी तथा मौलिक हैं।
- सामवेद को तीन शाखाओं में बांटा जा सकता है :- (1) जेमिनीय, (2) राणायनीय, (3) कौथुम
- सामवेद संगीतात्मक यानी गीत के रूप में है। इस वेद को संगीत शास्त्र का मूल कहा जाता है।
- किस वेद में सविता, अग्नि और इंद्र देवता के बारे में जिक्र किया गया है।
3. यजुर्वेद :-
- यजुर्वेद कर्मकांड प्रधान ग्रंथ है, यह दो भागों में विभक्त है (1) कृष्ण यजुर्वेद (गद्य), (2) शुक्ल यजुर्वेद (पद्य)। यह गद्य तथा पद्य दोनों में है।
- यजुर्वेद में कर्मकांड तथा अनुष्ठान में प्रयोग किए जाने वाले श्लोक तथा मंत्र का संकलन है।
- यजुर्वेद में कृषि तथा सिंचाई की विभिन्न तकनीकों के बारे में वर्णन है। इस वेद में चावल की विभिन्न प्रकार की किस्मों का वर्णन है।
- किस वेद में पाठ के लिए मंत्रों तथा बलि के समय होने वाले विभिन्न नियमों के पालन का वर्णन किया गया है।
- यजुर्वेद को पढ़ने वाले को अध्वर्यु कहा जाता है।
- किस वेद में बलिदान की विधि का भी वर्णन किया गया है।
- किस वेद में राजसूय वाजपेय तथा अश्वमेध जैसे यज्ञ की भी चर्चा की गई है।
- वैदिक काल के समय विभिन्न प्रकार की महिला अधिकारियों (रत्निनों) का भी वर्णन यजुर्वेद में किया गया है।
- यजुर्वेद की दो शाखाएं है :-
(1) कृष्ण यजुर्वेद :- वैशम्पायन ऋषि कृष्ण यजुर्वेद से संबंधित है, इस शाखा के चार और शाखाएं हैं मैत्रायणी संहिता, काठक संहिता, कपिन्थल तथा संहिता।
(2) शुक्ल यजुर्वेद :- याज्ञवल्क्य ऋषि शुक्ल यजुर्वेद से संबंधित है। शुक्रिया जावेद की दो शाखाएं हैं :- मध्यान्दिन तथा कण्व संहिता।
4. अथर्ववेद :-
- ‘अथर्व’ शब्द का शाब्दिक अर्थ है ‘पवित्र जादू’। अथर्व से रोग निवारण, राजभक्ति, अंधविश्वास तथा विवाह जैसी चीजों के बारे में जानकारी मिलती है।
अथर्व वेद की रचना अथर्वा ऋषि द्वारा की गई है। - अथर्ववेद के अधिकतर मंत्र जादू टोना तथा तंत्र-मंत्र से संबंधित है। इस वेद के मंत्रों को भारतीय विज्ञान का आधार भी माना जाता है।
- इस वेद में रोग निवारण के लिए औषधियों का भी वर्णन किया गया है।
- इस वेद में कुल 6000 पद दिए तथा 731 मंत्र है। इस वेद में कुछ मंत्र तो ऐसे हैं जो ऋग्वेद के मंत्रों से भी पुराने हैं।
अथर्ववेद लड़कियों के जन्म की निंदा करता है। जो यह दिखाता है कि उस समय का समाज पितृ सत्तात्मक था। - इस वेद में सामान्य मनुष्य के विचारों तथा अंधविश्वासों का भी जिक्र मिलता है।
- इस वेद में रहस्यमई विद्याओं, जड़ी बूटियों, चमत्कार और आयुर्वेद आदि का भी वर्णन है।
- किस वेद में गृह निर्माण, रोग निवारण, समन्वय, राजा का चुनाव, विवाह, शाप, व्यापारिक मार्गों की खोज, वनस्पतियों और औषधियों के बारे, प्रायश्चित, कृषि की उन्नति इत्यादि का वर्णन है।
- इसमें परीक्षित को कुरुओं का राजा कहा गया है एवं कुरू देश की समृद्धि का अच्छा चित्रण होता है।
- अथर्ववेद को दो शाखाओं में विभाजित किया गया है -शौनक और पैप्पलाद ।
- इस वेद में सभा और समिति को प्रजापति की दो पुत्री कहा गया है।
- सबसे बाद का वेद अथर्ववेद है।
उपवेद :-
- उपवेद वेदों के परिशिष्ट है, इसके माध्यम से वेद की तकनीकी बातों को स्पष्ट किया जाता है।
- सुश्रुत तथा भाव प्रकाश ने आयुर्वेद को अथर्ववेद का उपदेश माना था। कालांतर में स्थापत्य वेद तथा शिल्प शास्त्र को भी उपवेद की श्रेणी में रखा गया था।
- ऋग्वेद- आयुर्वेद (चिकित्सा शास्त्र)
यजुर्वेद- धनुर्वेद (युद्धशास्त्र से संबंधित)
सामवेद- गंधर्ववेद (संगीत शास्त्र)
अथर्ववेद- शिल्पवेद (भवन निर्माण कला)
ब्राह्मण :-
- प्रत्येक वेद की गद्य रचना ही ब्राह्मण ग्रंथ है। वैदिक मंत्रों तथा संस्थाओं को ब्राह्म कहा जाता है।
- इससे उत्तर वैदिक काल के संस्कृति और समाज के बारे में हमें जानकारी प्राप्त होती है।
- ऐतरेय ब्राह्मण में 8 मंडल है इसकी रचना महिदास ऐतरेय ने की थी।
वेद, उपवेद एवं प्रमुख ब्राह्मण ग्रंथ :-
वेद | उपवेद | रचनाकार | ब्राह्मण ग्रंथ |
ऋग्वेद | आयुर्वेद | प्रजापति | ऐतरेय, कौषीतकी |
यजुर्वेद | धनुर्वेद | विश्वमित्र | तैत्तरीय, शतपथ |
सामवेद | गंधर्ववेद | नारद | पंचविश, जैमनीय, षडविश, तांड्य |
अथर्ववेद | शिल्पवेद | विश्वकर्मा | गोपद |
- यह ब्राह्मण ग्रंथ हमें परीक्षित के बाद तथा बिंदुसार के पूर्व की घटित घटनाओं के बारे में जानकारी देते हैं।
- महर्षि याज्ञवल्क्य ने मंत्र सहित ब्राह्मण ग्रंथों की उपदेश आदित्य से प्राप्त किया है।
- ऐतरेय ब्राह्मण में 8 मंडल तथा 5 अध्याय हैं। इसे पंजिका भी कहा जाता है। ऐतरेय में राज्य अभिषेक के नियम एवं कुछ प्राचीन समय के राजाओं के नाम दिए गए हैं।
- शतपथ ब्राह्मण में गांधार शल्य कहकर गुरु पंचाल विधि और कौशल इत्यादि जैसे राजाओं के नाम दिए गए हैं और उनका उल्लेख किया गया है। इसमें स्त्री को पुरुष की अर्धांगिनी कहा गया है।
आरण्यक :-
- आरण्यक शब्द ‘अरण्य’ से बना है जिसका अर्थ है जंगल।इसमें आत्मा परमात्मा जन्म मृत्यु पुनर्जन्म इत्यादि के बारे में जानकारी मिलती है। यह ज्ञान मार्ग तथा कर्म मार्ग के बीच जुड़ाव का कार्य करती है।
- इसमें कर्मकांड की अपेक्षा ज्ञान पक्ष को अधिक महत्व दिया गया है।
- ऋषि द्वारा जंगलों में रचित ग्रंथों को आरण्यक कहा जाता है।
- सभी आरण्यक ग्रंथ ब्राह्मण ग्रंथों से जुड़े हैं वर्तमान में 7 आरण्यक उपलब्ध है:-ऐतरेय, तैत्तिरीय, तल्वकार, जैमिनी।
उपनिषद :-
- इसका शाब्दिक अर्थ ‘समीप ऑपरेशन’ या ‘समीप बैठना है’। इसका तात्पर्य उस विद्या से है, जो गुरु के समीप बैठकर, एकांत में सीखी जाती है। इसमें आत्मा और ब्राह्म के बीच के संबंध का वर्णन मिलता है।
- उपनिषदों की संख्या 108 है जिसमें 13 को मूलभूत उपनिषदों की श्रेणी में रखा गया है।
- उपनिषद में शिष्य और ऋषि के बीच बहुत ही सुंदर से संवाद है जो पढ़ने वाले को वेद के मर्म तक पहुंचाता है।
- जाबालोपनिषद में चारों आश्रमों का उल्लेख मिलता है।
- श्वेतकेतु और उसके पिता का संवाद छांदोग्योषनिद में है।
- यम तथा नचिकेता के बीच संवाद कठोपनिषद में है।
स्मृतिग्रंथ :-
- स्मृति साहित्य के अंतर्गत स्मृति पुराण तथा धर्मशास्त्र आते हैं। स्मृति ग्रंथों में जीवन के आचार विचार तथा नियमों के विषय में वर्णन किया गया है।
- स्मृति ग्रंथ वेदों की अपेक्षा कम जटिल होते हैं। इनमें बहुत सारी कहानियां तथा वेद होते हैं जिसकी वजह से इन्हें समझना बहुत आसान है।
- हिंदू धर्म पर स्मृति ग्रंथों का सबसे अधिक प्रभाव पड़ा है। स्मृति ग्रंथ की रचना सूत्रों के बाद हुई।
- स्मृति ग्रंथ में सबसे प्राचीन मनुस्मृति है इसकी रचना दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में शुंग काल में हुई यह शुंग काल का मानक ग्रंथ है। इस पर मेघतिथि गोविंदराज व कुल्लूकभटृ ने टिप्पणी की है।
- नारद स्मृति गुप्त युग के बारे में वर्णन करता है।
- याज्ञवल्क्य स्मृति पर विश्वरूप तथा अपराक ने टिप्पणी की थी।
- इनसे सामाजिक नियम बताए गए हैं कुछ मुख्य स्मृतियां- मनुस्मृति, वृहस्पति स्मृति, याज्ञवल्क्य, नारद, पराशर तथा कात्यायन है।
वेदांग :-
- वेदों का अर्थ समझने के लिए वेदांग की रचना की गई है।
- वेदांग छह है वे हैं-शिक्षा, कल्प, निरुक्त, व्याकरण, छंद एवं ज्योतिष।
- वेदांग की रचना वेदों की कि्लष्टता को कम करने के लिए की गई है।
सूत्र :-
- वैदिक साहित्य में विधि और नियमों का प्रतिपादन करने के लिए सूत्र साहित्य का प्रणयन किया गया है जिसे कल्पसूत्र कहा गया है।
- इसके 3 भाग है- श्रोत सूत्र, गृह सूत्र तथा धर्म सूत्र।
- श्रोत गृह तथा धर्म सूत्रों के अध्ययन से हमें यज्ञ के विधि-विधान और कर्मकांडों तथा राजनीति के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है ।
- श्रोत सूत्र :- यह वेदांग कल्पसूत्र का पहला भाग है इससे महायज्ञ से संबंधित विस्तृत विधि विधान ओं के बारे में जानकारी मिलती है।
- गृह सूत्र :- इस सूत्र में उत्सवों, पारिवारिक संस्कारों तथा व्यक्तिगत यज्ञ से संबंधित विधि-विधानों का वर्णन किया गया है।
- धर्मसूत्र :- यह कल्पसूत्र का चौथा भाग है इसमें सामाजिक, धार्मिक कानून का वर्णन है।
पुराण :-
- पुराण ऐतिहासिक घटनाओं का सबसे अच्छा क्रमबद्ध वर्णन है। यह ऐतिहासिक प्रवृत्तियों को सामने लाता है।
- इसके संकलन का श्रेय वेदव्यास को है।
- पुराणों की कुल संख्या 18 है इसमें मत्स्य,वायु, वामन, मार्कण्डेय, विष्णु इत्यादि प्रमुख पुराण हैं।इन पुराणों से विभिन्न राजाओं की वंशावलियों की जानकारी मिलती है इसलिए यह अति महत्वपूर्ण है।
- पुराणों में प्राचीन ऋषि-मुनियों व राजाओं का वर्णन है।
- पुराणों में मत्स्यपुराण सबसे प्राचीन एवं प्रमाणिक है इसमें सातवाहन वंश का वर्णन है इसमें विष्णु के 10 अवतारों के बारे में बताया गया है।
- अग्नि पुराण में गणेश पूजा का वर्णन है।
- मार्कंडेय पुराण में देवी दुर्गा का वर्णन है।
- वायु पुराण में गुप्त वंश का वर्णन है।
- पुराणों में अधिकतर जो पुरान हैं वह सरल संस्कृत श्लोक में लिखे हुए हैं इन पुराणों की स्त्रियां तथा शुद्र सुन सकते हैं पुराणों को पुजारी मंदिर में सुनाया करते थे।
- 18 पुराणों के नाम इस प्रकार हैं-ब्राह्मा, मार्कंडेय, स्कंद, पद्य, अग्नि, वामन, विष्णु, भविष्य, कूर्म, शिव, ब्रह्मावर्त, मत्स्य, भागवत, लिंग, गरूड़, नारद, वराह तथा ब्रम्हांड पुराण।
- अग्नि पुराण इसमें काफी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसमें राजतंत्र के साथ-साथ कृषि का भी वर्णन है।
षड्दर्शन :-
वैदिक साहित्य के अतिरिक्त भारतीय समाज तथा दर्शन को दिशा देने वाले अन्य ग्रंथ भी हैं जिनसे भारतीय दर्शन का निर्माण हुआ है। इनमें आत्मा, जीव, जगत,ब्राह्म इत्यादि को विभिन्न प्रकार से समझने का प्रयास मिला है।
भारतीय दर्शन |
सांख्य | कपिल |
न्याय | गौतम |
योग | पतंजलि |
वैशेषिक | कणाद |
पूर्व मीमांसा | जैमिनी |
उत्तर मीमांसा | बादरायण |
रामायण :-
रामायण की रचना महर्षि वाल्मीकि ने की थी। यह संस्कृत भाषा में है। इसे चतुर्विंशतिसहस्त्रीसंहिता भी कहा जाता है क्योंकि इसमें वर्तमान में 24000 श्लोक हो गए हैं। रामायण को 7 भागों में विभाजित किया गया है:- बालकांड, अयोध्याकांड, अरण्यकांड, किष्किंधाकांड, सुंदरकांड, युद्धकांड तथा उत्तरकांड।
महाभारत :-
महाभारत 18 पर्वों में विभक्त है इसे जयसंहिता या शतसाहस्त्र संहिता भी कहा जाता है। इसकी रचना महर्षि वेदव्यास ने की थी। इसमें 8800 श्लोक थे किंतु अभी इसमें 1 लाख श्लोक हैं इसलिए इसे महाभारत कहा जाता है। इसके 18 भाग हैं:-सभा, वन, विराट, आदि, उद्योग, द्रोण, भीष्म, कर्ण, शल्य, सैप्तिक, शांति, स्त्री, अनुशासन, अश्वमेध, आश्रमवासी, स्वर्गारोहण, मौसल, महाप्रस्थानिक है।
बौद्ध धर्म से जुड़े साहित्य :-
- जैसे-जैसे बौद्ध धर्म का प्रचार- प्रसार में वृद्धि हुई वैसे-वैसे बौद्ध धर्म से जुड़े बहुत सारे साहित्यों की भी रचना होने लगी। बौद्ध ग्रंथों में त्रिपिटक, निकाय तथा जातक प्रमुख ग्रंथ है।
- जातक में बुध्द के पूर्व जन्म की कथाओं का वर्णन है। सुत्तपिटक में बुध्द के उपदेश का वर्णन है, विनयपिटक में भिक्षु-भिक्षुणियों से जुड़े हुए नियम तथा अधिमधम्मपिटक में बौद्ध मतों की दार्शनिक व्याख्या की गई है।
- हीनयान का प्रमुख ग्रंथ कथावस्तु है, इसमें महात्मा बुध के जीवन चरित्र का वर्णन है।
- बौद्ध ग्रंथ दीपवंश, महावंश से मौर्यकालीन के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। मिलिंदपन्हो जिसकी रचना नागसेन के द्वारा की गई है इससे हिंद यवन शासक मिनांडर के बारे में पता चलता है।
- त्रिपिटक सबसे पुराना बौद्ध साहित्य है इसकी रचना महात्मा बुध्द के निर्माण के बाद की गई थी।
- त्रिपिटक के तीन भाग है:-सुत्तपिटक विनयपिटक तथा अभिधम्मपिटक।
- सुत्तपिटक में महात्मा बुध्द के सिद्धांतों का वर्णन है। विनयपिटक में बौद्ध मठों के संगठन तथा अनुशासन का वर्णन है तथा अधिगमपिटक में वेदांतिक सिद्धांत का वर्णन किया गया है।
जैन धर्म से जुड़े साहित्य :-
- जैन साहित्य की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें कथाओं को इस तरह से प्रस्तुत किया गया है कि इतिहासकारों को तथ्य संकलित करने में परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता है।
- जैन साहित्य में महावीर के द्वारा प्रतिपादित सिद्धांत का वर्णन है।
- जैन साहित्य को आगम कहा जाता है। जैन साहित्य प्राकृत भाषा में लिखी गई है। आगम में 12 अंग, 12 उपांग, 10 प्रकीर्ण वह 6 छेद सूत्र हैं।
- जैन ग्रंथ भगवती सूत्र में महावीर स्वामी के जीवन तथा समकालीन घटनाओं का वर्णन है। जैन धर्म का प्रारंभिक इतिहास कल्पसूत्र से ज्ञात होता है। जैन ग्रंथ भद्रबाहु चरित्र से मौर्य वंश के शासक चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की घटनाओं का वर्णन है।
2. गैर-धार्मिक साहित्य :-
धार्मिक स्रोतों के अलावा वैसे अन्य स्रोत जिससे एतिहासिक घटनाओं के बारे में जानकारी प्राप्त होती है वे सभी गैर-धार्मिक साहित कहलाते हैं। इतिहास में बहुत सारे विद्वान तथा कूटनीतिज्ञ हुए हैं जिन्होंने बहुत सारे पुस्तकें, वृत्तांत तथा जीवनी लिखी तथा उन पुस्तकों, जीवनी, साहित्य से इतिहास के स्रोत के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इन साहित्यों को धर्मेत्तर साहित्य कहा जाता है। ऐसे बहुत सारे विद्वान तथा कूटनीतिज्ञ इस प्रकार है:-
1. कौटिल्य का अर्थशास्त्र :- कौटिल्य जिन्हें चाणक्य तथा विष्णुगुप्त भी कहा जाता है अर्थशास्त्र के रचयिता है। कौटिल्य चंद्रगुप्त मौर्य का प्रधानमंत्री था। अर्थशास्त्र की रचना उन्होंने चौथी सदी ईसा पूर्व में की। अर्थशास्त्र कौटिल्य द्वारा रचित संस्कृत का एक ग्रंथ है। इसमें कृषि, न्याय, राजनीति तथा राज्यव्यवस्था जैसे विभिन्न पहलुओं का वर्णन किया गया है। इस ग्रंथ में तात्कालिक शासन व्यवस्था के विषय में प्रमाण मिलता है। यह राजकीय व्यवस्था पर लिखित प्रथम पुस्तक है। यह 15 अधिकारियों तथा 180 प्रकरणों में विभाजित है।
2. पाणिनी की अष्टाध्यायी :- अष्टाध्यायी संस्कृत व्याकरण का पहला ग्रंथ है, इसकी रचना पाणिनी ने की थी। अष्टाध्यायी में पहली बार लिपि शब्द का प्रयोग हुआ है। इस ग्रंथ से मौर्य के पहले का इतिहास तथा मौर्ययुगीन राजनीतिक, सामाजिक दशा का चित्रण मिलता है।
3. विशाखदत्त का मुद्राराक्षस :- विशाखदत्त द्वारा रचित ग्रंथ मुद्राराक्षस से नंद वंश के पतन और चंद्रगुप्त मौर्य को राजा बनाए जाने के बारे में वर्णन किया गया है।
4. पतंजलि का महाभाष्य :- पतंजलि पुष्यमित्र शुंग के पुरोहित थे। शुंगकाल में पतंजलि ने पाणिनी की अष्टाध्याई पर महाभाष्य लिखा था। इस महाभाष्य से मौर्योत्तरकालीन व्यवस्था की जानकारी मिलती है।इस महाभाष्य से शुंगों के इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
5. कल्हण की राजतरंगिणी :- संस्कृत साहित्य में ऐतिहासिक घटनाओं को क्रमबद्ध लिखने का सबसे पहले प्रयास कल्हण द्वारा किया गया था। कल्हण द्वारा राजतरंगिणी (राजाओं की नदी) पुस्तक की रचना की गई है। इस ग्रंथ की रचना 12 वीं शताब्दी में की गई थी। कल्हण की राजतरंगिणी में कश्मीर के इतिहास का वर्णन है। इस ग्रंथ में 8 सर्ग है जिन्हें तरंग कहा गया है। इस ग्रंथ में कल्हन के सम्राट हर्षवर्धन का गुणगान किया गया है।
6. बाणभट्ट का हर्षचरित :- बाणभट्ट द्वारा रचित ग्रंथ हर्षचरित में राजा हर्षवर्धन के शासनकाल के समय की ऐतिहासिक घटनाओं का वर्णन किया गया है। हर्षचरित की रचना सातवीं शताब्दी में की गई थी।
7. कत्यायन की गार्गी :- कात्यायन द्वारा रचित ग्रंथ गार्गी संहिता एक ज्योतिष ग्रंथ है। इस ग्रंथ में भारत पर यह नो द्वारा किए गए आक्रमणों का वर्णन किया गया है।
(2) विदेशियों का वृतांत :-
भारत में समय-समय पर बहुत सारे लेखक तथा विद्वान बाहर से आए तथा उन्होंने यहां की सामाजिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक तथा भौगोलिक व्यवस्था का वर्णन करने के लिए बहुत सारी पुस्तकों की रचना की इन्हीं पुस्तकों से हमें इतिहास के विभिन्न स्रोतों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है। इन साहित्यिक स्रोतों को आसानी से समझने के लिए हम इन्हें चार भागों में बांट सकते हैं। वह हैं:- यूनानी-रोमन लेखक, चीनी लेखक, अरबी लेखक, अन्य लेखक।
यूनानी रोमन लेखक :-
1. हेरोडोटस :- यह ईरानी लेखक था, यह सबसे पुराने यूनानी इतिहासकार थे। इसे ‘इतिहास का पिता’ भी कहा जाता है। इसके द्वारा रचित पुस्तक ‘हिस्टोरिका’ है जिसमें उन्होंने पांचवी शताब्दी के भारत और फारस के बीच के संबंध का वर्णन किया है। इनकी रचनाओं में कल्पित कहानियों को स्थान दिया गया है।
2. टेसियस :- यह ईरानी राजवैद्य था। उन्होंने भारत के विषय में जो जानकारी दी है वह आश्चर्यजनक है जिससे उन पर विश्वास करना सही नहीं है।
3. सिकंदर के साथ आए लेखक :- सिकंदर जो एक यूनानी शासक था इसके साथ काफी यूनानी शासक भारत आए इनमें नियार्कस, आनेसिक्रटस तथा अरिस्टोबुलस महत्वपूर्ण है।
4. मेगास्थनीज :- मेगास्थनीज चंद्रगुप्त मौर्य के दरबार में यूनानी शासक सेल्यूकस का राजदूत था। इसके द्वारा रचित पुस्तक इंडिका है जिससे मौर्ययुगीन समाज एवं संस्कृति का विवरण मिलता है।
5. डाइमेकस :- डाइमेकस सीरिया के राजा आन्तियोकस का राजदूत था। यह बिंदुसार के दरबार में आया था। डाइमेकस जैसे लेखक का वर्णन भी मौर्य-युग से संबंधित है।
6. डाइनोसियस :- डायनोसियस अशोक के दरबार में आया था यह मिस्र के राजा टॉलमी फिलेडेल्फस का राजदूत था।
7. टालमी :- टालमी ने दूसरी शताब्दी में ‘भारत का भूगोल’ (Geography) की रचना की जिसमें भारत के भौगोलिक परिदृश्य का वर्णन किया गया है। या एक यूनानी लेखक था इसकी पुस्तक से अनेक महत्वपूर्ण जानकारी प्राप्त होती है।
8. प्लिनी :- प्लिनी ने प्रथम शताब्दी में ‘नेचुरल हिस्ट्री’ नामक पुस्तक की रचना की थी। इस पुस्तक से भारत की वनस्पति, पशु तथा खनिज पदार्थों के साथ-साथ भारत और इटली के मध्य व्यापारिक संबंधों का भी वर्णन किया गया है। इस पुस्तक से बहुत सारी भारतीय पशु, पौधों और खनिज पदार्थों के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
9.पेरीप्लस ऑफ द एरिथियन-सी :- यह पुस्तक एक अज्ञात यूनानी लेखक द्वारा रचित है। इस पुस्तक से इसके लेखक के विषय में जानकारी प्राप्त नहीं होती है। यह लेखक मिस्र में आकर बस गया था तथा इसने 80 ई. में भारतीय समुद्र तट की यात्रा की थी। इसके द्वारा किए गए वर्णन में बंदरगाहों का उल्लेख तथा आयात-निर्यात किए गए वस्तुओं के विषय में भी जानकारी प्राप्त होती है। इस अज्ञात लेखक ने भारत के बंदरगाहों तथा व्यापारिक वस्तुओं के बारे में जानकारी दी है।
10. स्ट्रेवो :- यह एक प्रसिद्ध यूनानी लेखक जिसने मेगास्थनीज के दिए गए विवरण को काल्पनिक माना था।
चीनी लेखक :-
1. फाह्यान :- यह चीनी यात्री चंद्रगुप्त द्वितीय के शासनकाल में आया था। यह 14 वर्षों तक भारत में रहा इसने ‘फो क्यों कि’ नामक पुस्तक लिखी इस पुस्तक में उन्होंने भारतीय समाज, राजनीति तथा संस्कृति के विषय में जानकारी दी है इसने मध्य प्रदेश की जनता को समृद्ध एवं सुखी बताया है। उन्होंने विशेष रूप से भारत में बौद्ध धर्म की स्थिति के बारे में लिखा है।
2. ह्वेनसांग :– ह्वेनसांग हर्षवर्धन के शासनकाल में भारत आया था। यह 629 ई. में चीन से भारत के लिए निकला था तथा लगभग 1 साल के बाद वह भारत के कपिशा नामक राज्य में पहुंचा। वह मुख्य रूप से नालंदा विश्वविद्यालय में अध्ययन करने आया था तथा भारत से बौद्ध ग्रंथों को ले जाने आया था। यह भारत में 15 वर्षों तक रहा। ह्वेनसांग की रचना सी-यू-की है। उन्होंने भारत की धार्मिक अवस्था के साथ-साथ राजनीतिक दशा का भी वर्णन किया है। इतिहासकारों ने ह्वेनसांग को ‘यात्रियों का राजा’ कहा है। इसके अनुसार सिंध का राजा शूद्र था। ह्वेनसांग की रचना से 138 देशों का विवरण मिलता है। ह्वेनसांग ने बुध की प्रतिमा के साथ-साथ सूर्य और शिव की प्रतिमाओं का भी पूजन किया था।
3.इत्सिंग :- इत्सिंग सातवीं शताब्दी में भारत आया था।उसने विक्रमशिला तथा नालंदा विश्वविद्यालय में रहकर बौद्ध धर्म का अध्ययन किया था। इन्होंने नालंदा विश्वविद्यालय, विक्रमशिला विश्वविद्यालय, बौद्ध शिक्षा संस्थाओं तथा भारतीय समाज का विस्तृत विवरण अपनी रचना में की थी। इन्होंने बौद्ध वेशभूषा, खानपान के विषय में अपनी रचना में लिखा।
अरबी लेखक :-
1. अलबरूनी :- अरबी यात्रियों में अलबरूनी सबसे ज्यादा प्रमुख है। यह महमूद गजनवी के साथ भारत आया था। अलबरूनी ख्वारिज्म (आधुनिक तुर्कमेनिस्तान) का रहने वाला था। इन्होंने अरबी में ‘तहकीक-ए-हिंद’ नामक ग्रंथ की रचना की थी। इस ग्रंथ में धर्म और दर्शन, त्योहारों, कीमिया,रीति-रिवाजों, प्रथाओं सामाजिक जीवन, भार तौल और मापन विधि, मूर्तिकला, कानून, खगोल विज्ञान जैसे अध्याय दिए गए हैं। इन्होंने इस पुस्तक में 11 वीं शताब्दी ईस्वी के भारत की दशा पर प्रकाश डाला है।
2.इब्नबतूता :- इसने अरबी भाषा में अपने यात्रा वृतांत को लिखा है जिसे ‘रेहला’ नाम से जाना जाता है। चौदहवीं शताब्दी में सुल्तान मोहम्मद बिन तुगलक ने इसकी विद्वता से प्रसन्न होकर इन्हें दिल्ली का काजी या न्यायाधीश घोषित किया था।
3.सुलेमान :- यह लेखक 9 वीं शताब्दी में भारत आया था इन्होने पाल तथा प्रतिहार शासकों का इतिहास लिखा था।
4. अलबरूनी :- इनका वास्तविक नाम अबू रिहान था। इन्होंने ‘तहकीक ए हिंद’ पुस्तक की रचना की थी। इन्होंने संस्कृत भाषा का अध्ययन करके भारतीय समाज का विस्तृत विवरण अपनी रचना में दिया है। यह महमूद गजनबी का समकालीन था।
अन्य लेखक :-
1. बोद्धलामा तारानाथ :- यह तिब्बती लेखक था इन्होंने कंग्युर तथा तंग्यूर नामक ग्रंथ लिखे। इन ग्रंथों से भारत के इतिहास के विषय में जानकारी प्राप्त होती है साथ ही साथ इस ग्रंथ से मौर्य काल और उसके बाद की घटनाओं का भी वर्णन मिलता है।
2. मार्कोपोलो :- 13 वीं शताब्दी के अंत में मार्कोपोलो पांडेय नामक देश की यात्रा के लिए भारत आया था और इस बात की जानकारी पांड्य इतिहास के अध्ययन करने से हमें प्राप्त होती है।
(3) पुरातात्विक स्रोत :-
- प्राचीन इतिहास के अध्ययन के लिए पुरातात्विक स्रोत का विशेष महत्व है। यह स्रोत कालक्रम का स्पष्ट और सही ज्ञान प्रदान करते हैं।
- पुरातात्विक स्रोत में अभिलेख, मुद्रा, मूर्तियां, स्मारक तथा चित्रकला इत्यादि आते हैं यह चीजें इतिहास के विषय में जानकारी प्रदान करते हैं।
- भारतीय पुरातत्वशास्त्र का पिता (Father Of Archeology) ‘सर अलेक्जेंडर कनिंघम’ को कहा जाता है। पुरातात्विक साक्ष्यों में अभिलेख, सिक्के, स्मारक/भवन, मूर्तियां तथा चित्रकला इत्यादि प्रमुख हैं।
अभिलेख/शिलालेख :-
- अभिलेखों के बारे में अध्ययन पुरालेखशास्त्र (एपीग्राफी) कहलाता है।
- अभिलेख शिलाओ, स्तंभों, ताम्रपत्रों, दीवारों, मुद्राओं एवं प्रतिमाओं आदि पर खुदे हैं।
- अभिलेख विभिन्न रूपों में प्राप्त होते हैं यह विभिन्न प्रकार के होते हैं जब अभिलेख को शीला पर लिखा जाता है तब इसे शिलालेख,जब इसे स्तंभ पर लिखा जाता है तब स्तंभ लेख, जब इसे ताम्र पर लिखा जाता है तब ताम्र लेख तथा जब मूर्ति पर लिखा जाता है तब अभिलेख को मूर्ति ले कहा जाता है।
- अभिलेख राज्य तथा राजा के विषय में सटीक तथा विस्तृत जानकारी प्रदान करता है।
- भारत के इतिहास में सबसे पुराने अभिलेख सिंधु घाटी सभ्यता से प्राप्त हुए हैं। क्योंकि सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि अज्ञात है इसे पढ़ा नहीं जा सकता इसलिए इन अभिलेखों को पढ़ना मुश्किल है।
- बोगाज़कोई अभिलेख जोकि 1400 ई. पूर्व का है इससे आर्यों के इरान से पूर्व की ओर आने के बारे में पता चलता है। इस अभिलेख में वैदिक देवता मित्र, वरुण, इंद्र और नासत्य के बारे में वर्णन किया गया है।
- महास्थान तथा साहगौरा के अभिलेख :- ये अभिलेख चंद्रगुप्त मौर्य के शासन काल के समय के है।इस अभिलेख में सूखे से पीड़ित प्रजा को राहत देने की बात की गई है तथा साथ ही साथ इस अभिलेख में संकटकाल में उपयोग करने के लिए खाद्यान्नों को सुरक्षित करने के लिए भी कहा गया है।
- सबसे प्राचीन अभिलेख मौर्य शासक अशोक के हैं और अशोक द्वारा रचित अधिकतर अभिलेख ब्राह्मी लिपि में लिखे गए हैं। अशोक के अभिलेख से उस समय के धर्म और राजत्व का वर्णन देखने को मिलता है।
- हाथीगुम्फा अभिलेख :- सर्वप्रथम भारतवर्ष का प्रयोग हाथीगुंफा अभिलेख में किया गया था।
- विसनगर (विदिशा) गरुड़ स्तंभलेख :- यह स्तंभ लेख मध्य प्रदेश में भागवत धर्म विकसित होने का प्रमाण देता है। इस स्तंभ लेख को यवन राजदूत होलियोडोरस द्वारा बनवाया गया था।
- भीतरी स्तंभ लेख :- स्तंभ लेख भारत पर सबसे पहले हून आक्रमण की जानकारी देता है।
- एरण अभिलेख :- यह अभिलेख सती प्रथा का पहला साक्ष्य प्रदान करता है जो कि भानुगुप्त के द्वारा बनवाए गए थे।
- मंदसौर अभिलेख :- इस अभिलेख से रेशम बुनकरों के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
- मासकी तथा गुर्जरा में स्थापित अभिलेख में अशोक के नाम का उल्लेख है। नेत्तूर तथा उड्डेगोलम के अभिलेख में भी अशोक के नाम देखने को मिलते हैं। अशोक के प्रयाग अभिलेख पर समुद्रगुप्त की प्रशस्ति उत्कीर्ण है।
प्रमुख अभिलेख/शिलालेख :-
अभिलेख | शासक |
प्रयाग अभिलेख | समुद्रगुप्त |
हाथीगुंफा अभिलेख | कलिंग राज्य खारवेल |
नासिक अभिलेख | गौतमी बलश्री |
जूनागढ़ (गिरनार) अभिलेख | रुद्रदामन |
भितरी एवं जूनागढ़ अभिलेख | स्कंदगुप्त |
ऐहोल अभिलेख | पुलकेशिन-ll |
मंदसौर अभिलेख | यशोवर्मन |
ग्वालियर अभिलेख | भोज परमार |
एरण अभिलेख | भानुगुप्त |
मेहरौली अभिलेख | चंद्रगुप्त ll |
देवपाड़ा अभिलेख | विजयसेन |
सिक्के (Coins) :-
- सिक्कों के अध्ययन को न्यूमेस्मैटिक्स या मुद्रा शास्त्र कहा जाता है। प्राचीनतम सिक्के सोना, चांदी, कांसा, तांबा, सीसा के बने मिलते हैं।
- प्राचीन सिक्कों को ‘आहत सिक्के’ कहा जाता है। यह सिक्के बिना लेख (पंचमार्क सिक्के) के प्राचीनतम सिक्के थे। आहत सिक्कों को ऐतिहासिक ग्रंथों में कार्षापण कहा गया है।
- सिक्कों पर नाम उत्कीर्ण करने की परंपरा यूनानियों से आई। हिंदू यूनानियों ने सबसे पहले स्वर्ण मुद्रा जारी की थी। सबसे ज्यादा स्वर्ण मुद्रा कुषाणों ने जारी की थी तथा सबसे शुद्ध स्वर्ण मुद्रा गुप्तों ने जारी किए थे। शीशे की मुद्रा सातवाहन शासकों द्वारा जारी की गई थी। सातवाहन राजाओं का पूरा इतिहास उनके अभिलेख के आधार पर मिलता है।
- समुद्रगुप्त के एक सिक्के पर उसे वीणा बजाते हुए दिखाया गया है जोया दिखाता है कि समुद्रगुप्त संगीत प्रेमी थे।
- चांदी के सिक्के हैं चंद्रगुप्त द्वितीयके द्वारा चलाए गए थे और उन्होंने इन सिक्कों को अपनी जीत के उपलक्ष्य पर चलाया था। यह सिक्के पश्चिमी भारत में प्रचलित थे।
- यज्ञ श्री शातकर्णि की मुद्रा पर जलपोत का चित्र उत्कीर्ण है।
- चंद्रगुप्त विक्रमादित्य की व्याघ्र शैली की मुद्रा से शकों के विजय का वर्णन मिलता है।
मंदिर :-
- बौद्ध विहार तथा स्तूपो का निर्माण 4 से 5 वीं शताब्दी ईसा पूर्व के बाद ही हुआ था। मंदिरों को अलग-अलग शैलियों में निर्माण किया जाता था। दो तरह की शायरी पर चली थी जिनसे मंदिरों का निर्माण होता था वह है :- नागर शैली तथा द्रविड़ शैली।उत्तर भारत के मंदिरों के निर्माण की कला शैली को नागर शैली तथा दक्षिण भारत के मंदिरों के निर्माण की कला शैली को द्रविड़ शैली कहा जाता है। जिन मंदिरों के निर्माण में यह दोनों शैलियों का प्रयोग होता है वह वैसर शैली के मंदिर कहलाते हैं वैसर शैली पर निर्मित मंदिर का सबसे अच्छा उदाहरण दक्षिणापथ के मंदिर हैं।
- जब कोई हिंदू मंदिर चार सहायक मंदिरों से घिरा होता है तब उस मंदिर को पंचायतन शैली का मंदिर कहा जाता है। पंचायतन शैली पर निर्मित मंदिर के उदाहरण हैं :- दशावतार मंदिर (देवगढ़), गोंडेश्वर मंदिर (महाराष्ट्र), लिंगराज मंदिर (भुवनेश्वर), कंदरिया मंदिर (खजुराहो), ब्रह्मेश्वर मंदिर (भुवनेश्वर) लक्ष्मण मंदिर (खजुराहो)।
स्मारक :-
- देशी स्मारकों में हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, नालंदा, हस्तिनापुर के स्मारक प्रमुख हैं।
- विदेशी स्मारकों में कंबोडिया के अंकोरवाट मंदिर तथा जावा के बोरोबुदूर मंदिर से भारतीय संस्कृति का दक्षिण एशिया में प्रसार का पता चलता है।
मूर्तियां :-
- क्योंकि भारत में बहुत सारे धर्म का उद्भव हुआ इसलिए बहुत सारे मूर्तियां का भी विकास हुआ और वे प्रचलन में आई।
- प्राचीन भारत में बोधगया, अमरावती, सारनाथ, भरहुत मूर्तिकला के प्रमुख केंद्र थे।
- गांधार कला तथा मथुरा कला विभिन्न मूर्तिकला शैलियों में प्रमुख हैं।
मृदभांड :-
- विभिन्न प्रकार की मृदभांड से भी प्राचीन इतिहास के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
- सिंधु घाटी सभ्यता में लाल मृदभांड, उत्तर वैदिक काल में चित्रित धूसर मृदभांड जबकि मौर्य काल में काले मृदभांड प्रचलित थे।
चित्रकला :-
- चित्रकला के द्वारा इतिहास के बारे में बहुत सारी जानकारी प्राप्त होती है। चित्रों के माध्यम से हमें प्राचीन काल के लोगों का जीवन-शैली, उनकी संस्कृति, कला के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
- अजंता की गुफाओं के चित्र प्रथम शताब्दी ई. पूर्व से लेकर सातवीं शताब्दी तक है।
- मध्यप्रदेश के भीमबेटका की गुफाओं से प्राप्त होने वाले चित्रों से प्राचीनकाल की संस्कृति के विषय में जानकारी प्राप्त होती है।
Conclusion :
यहाँ पर हमने आपको “प्राचीन भारतीय इतिहास के स्रोत” के विषय में विस्तृत जानकारी दी है, यदि इस जानकारी से सम्बन्धित आपके मन में किसी प्रकार का प्रश्न आ रहा है, अथवा इससे सम्बंधित अन्य कोई जानकारी प्राप्त करना चाहते है, तो आप कमेंट बाक्स के माध्यम से पूछ सकते है, हम आपके द्वारा की गयी प्रतिक्रिया और सुझावों का इंतजार कर रहे है |